आर्थिक सर्वेक्षण : उड़ान भरने की चुनौतियां

बहुत आशावादी हो गए

मु ख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के नेतृत्व में बनी टीम द्वारा बनाई गई आर्थिक समीक्षा में आशावाद पेश किया गया है। इसमें बताया गया है कि जीडीपी ग्रोथ से ही सरकार हर आंख से आंसू पोंछ पाएगी। यह भी कहा गया है कि आने वाले वक्त में हम चीन से भी आगे बढ़ जाएंगे। पर हम आर्थिक समीक्षा को पूरा पढ़ें तो इस आशावाद को चुनौती देने वाले कई बिंदू हैं, जिन पर गौर करना चाहिए। इसमें कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था कमजोर थी, जिसमें थोड़ा सुधार हुआ है न कि वह तेजी से बढ़ रही है। कच्चे तेल के दाम कम होने का भी जिक्र किया है पर इसका 30 फीसदी लाभ ही उपभोक्ताओं को मिल पाया।

खतरों का जिक्र

खुद ऎसे चार वैश्विक कारण भी गिनाए हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन सकते हैं। इनमें अमरीका की फेडरल रिवर्ज की मौद्रिक कड़ाई, ग्रीस का संकट, कच्चे तेल के दाम बढ़ने की आशंका और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में कमी का जिक्र है। आम आदमी के फायदे के लिए जन धन योजना का भी उदाहरण दिया है पर 75 फीसदी लोगों के खाते में पैसा ही नहीं है।

सुधारों की बात की गई है। इनमें भूमि अधिग्रहण को आसान करने की बात कही है ताकि उद्योगों के लिए बिजनेस आसान हो जाएगा। पर साथ ही कह रहे हैं कि किसानों को अच्छा मुआवजा भी मिलेगा, ये दोनों साथ-साथ कैसे होगा? भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक के खिलाफ सरकार के सहयोगी ही नाराज दिख रहे हैं। देश में रोजगार मांगने वालों की तादाद हर साल 2.3 फीसदी से बढ़ रही है पर रोजगार में 1.5 फीसदी की दर से ही वृद्धि हो रही है। यह बड़ी चुनौती है।

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Crony Capitalism and the Ambanis
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Disappearing Democracy
Dismantling Of A Nation
  • Authorship: By Avay Shukla
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