वित्त वर्ष 2022-23 का बजट: अतिशय आशावाद का परिचय

कोविड महामारी की पृष्ठभूमि में वित्त वर्ष 2022-23 का बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अतिशय आशावाद का परिचय दिया है, जिसमें बहुत कुछ अस्पष्ट है।सबसे पहले आर्थिक विकास दर की बात करें। हकीकत यह है कि महामारी के पहले से ही हमारी आर्थिक विकास दर में कमी दिख रही थी।

महामारी के कारण वर्ष 2020-21 में हमारी आर्थिक विकास दर में 6.6 प्रतिशत की कमी आई। इस साल आर्थिक विकास दर 9.2 फीसदी रहने की उम्मीद है, जबकि अगले वित्त वर्ष में आर्थिक विकास दर आठ से साढ़े आठ प्रतिशत के आसपास रहने की बात कही जा रही है।

स्थिति यह है कि एनएसओ (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय) आर्थिक विकास दर का आंकड़ा कुछ और बताता है, जबकि आर्थिक समीक्षा में कुछ और कहा जाता है। विकास दर के आंकड़े बदलते रहते हैं। ऐसे ही वित्तीय घाटे का आंकड़ा देखें। बजट के मुताबिक, मौजूदा वित्त वर्ष में वित्तीय घाटा जीडीपी का 6.9 प्रतिशत रहने वाला है, जबकि अगले वित्त वर्ष में वित्तीय घाटे का लक्ष्य 6.4 फीसदी रखा गया है, जो आश्चर्यजनक है। विगत दिसंबर में थोक मूल्य सूचकांक 13.56 फीसदी और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 5.59 प्रतिशत था। कच्चे तेल की जो हमारी खपत है, उसका 80 फीसदी से भी अधिक हिस्सा हम आयात करते हैं।

अभी तक विश्व बाजार में कच्चे तेल के भाव बढ़ने पर हमारे यहां भी पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते थे। लेकिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को देखते हुए सरकार ने पिछले कुछ समय से इनके दाम नहीं बढ़ाए हैं, जबकि विश्व बाजार में इनके दामों में तेजी जारी है। और आशंका यही है कि आगामी 10 मार्च से-जिस दिन चुनावों के नतीजे आने हैं-दो दिन पहले ही देश में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा दिए जाएंगे। बजट में इसका कोई जवाब नहीं है कि कच्चे तेल के दाम निरंतर बढ़ने और मुद्रास्फीति बढ़ने के बावजूद अगले वित्त वर्ष में वित्तीय घाटा इस साल की तुलना में कम कैसे होगा। महामारी की पृष्ठभूमि में स्वास्थ्य क्षेत्र के आवंटन पर स्वाभाविक ही सबसे अधिक नजर थी। अगले वित्त वर्ष के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में 86,606 करोड़ आवंटित किए गए हैं। जबकि पिछले बजट में भी स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटन लगभग इतना ही-यानी 85,915 करोड़ रुपये था। कोरोना काल में जब रोजगार का संकट है, तब मनरेगा के मद में आवंटन पिछले वित्त वर्ष के 98,000 करोड़ रुपये से भी घटाकर 73,000 करोड़ रुपये किया गया है।

सरकार ने पिछले बजट में मिड डे मील योजना में, जिसे पीएम पोषण नाम दिया गया था, 11,500 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, जिसे बाद में और घटाकर 10,233 करोड़ कर दिया गया था, क्योंकि महामारी के कारण स्कूल ज्यादातर बंद थे। आगामी वर्ष के बजट में सरकार ने इस मद में 10,233 करोड़ रुपये ही आवंटित किए हैं। तो क्या सरकार मान रही है कि अगले वित्त वर्ष में भी स्कूल ज्यादातर बंद ही रहने वाले हैं? ऑक्सफेम इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, महामारी के कारण भारत में 46 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए। बेरोजगारी की दर काफी अधिक है। रोजगार के मोर्चे पर क्या स्थिति है, इसका पता पिछले दिनों रेलवे भर्ती परीक्षा के दौरान हुई हिंसा से चला है। लेकिन वित्तमंत्री ने अपने करीब डेढ़ घंटे के बजट भाषण में बेरोजगारी शब्द का जिक्र तक नहीं किया। बजट में अगले पांच साल में छह करोड़ नई नौकरियां देने का वादा किया गया है। जबकि अगले पांच साल में तो एक और लोकसभा चुनाव निपट जाएगा।

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